एकांतिक वार्तालाप

आध्यात्मिक का नाम अंशु वर्मा जी
तारीख 3 – नवंबर – 2023
स्थान दिल्ली

 

प्रश्न 1 –  अंशु वर्मा जी, दिल्ली से राधे राधे गुरूजी। राधावल्लभ श्री हरिवंश महाराज जी छह महीने पहले मेरा ऑपरेशन हुआ था। उसमें डॉक्टर से मेरी यूरिन की नली कट गई, जिसके कारण मुझे और दो महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा और तीन और ऑपरेशन कराने पड़े। हालत बहुत गंभीर हो गई थी, जिसके कारण बहुत खर्चा भी उठाना पड़ा । उस समय आपकी वीडियो देखकर मेरा बुरा समय निकला। गुरूजी तब से मन बहुत अशांत रहता है। सब कहते हैं की मुझे डॉक्टर पर केस करना चाहिए । मुझे अपने बुरे प्रारब्ध समझ में नहीं आ रहे है।

उत्तरः वो हैं ही। आपने देखा यह ऑपरेशन हुआ, इन्फेक्शन हुआ, दो बार फिर आप ऑपरेशन हुआ, कुछ काम नहीं आया, डाइलिसिस और जगह से हो रहा है ये क्या था? हमारे कर्मों का भोग था कि इस शरीर से पाप कर्म बने हैं, उनको अवश्य भोगना । कृतम् कम सुभाष शुभम अगर थोड़ा भी ज्ञान है तो आप इतना समझ लो आपको एक सुई भी कोई नहीं चुभो  सकता। जब तक हमारे शरीर को दंड का विधान नहीं हुआ तब तक ऐसा नहीं होगा और है तो भोगना चाहिए। भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि मुझे वो सामर्थ्य दुख में भी आप क्षमा मत करना इस दुष्ट मन ने जो आपकी आज्ञा का उल्लंघन करके मनमाने आचरण किया है। तो इसी मन को इसी शरीर को भोगने दो। तुम अविनाशी के बच्चा हो, तुम्हारा कभी कोई बाल बांका नहीं कर सकता, तुम्हारा स्वरूप नहीं है  स्त्री है ना पुरुष हैं । तुम भगवान के  दिव्य अंश हो, वो समझ नहीं पा रहे हो मन ने जो हम को फंसाकर के पाप  आचरण शरीर के द्वारा कराये गये भोगने दो उसको । उसको पवित्र होने दो। आप इच्छा कर के भोगों, हमारी बात को समझो किसी का दोष नहीं है। अच्छा इसमें किसका दोष होगा? आप बताओ किसका दोष?  हाँ डॉक्टर ने पूरा प्रयास किया और जो ही ऑपरेशन होता  है हो गया आपनो देखा क्या? दुर्दशा हुई मतलब आखिरी हद तक दुबारा फिर ऑपरेशन हुआ वो कैसे कैसे कष्ट भोगने पड़े? हाँ उस में डॉक्टर का कोई अपराध नहीं है। इस शरीर का अपराध है उसको भोगना पड़ेगा, लेकिन हमारी इतनी सोच है, भगवान की बहुत बड़ी सोच है, न जाने किस जनम में किस काल में कौन सा भयानक अपराध बना भगवान कृपा करके ज्ञान देकर हम को उससे दूर रख कर भुगवा रहे है। अगर शरीर में आशक्ती हो,  तो सब कुछ हो पाएगा क्या? जो हो रहा है।  वो ऐसे आग लगी हुई है, और इतनी दूर करके कह रहे हैं, उधर मत देखो मेरी तरफ देखो, मेरी तरफ देखो।  यह भगवान की कृपा है की आपको उस समय सत्संग मिला। यह भगवान की कृपा है की आज आप यहाँ सामने बैठी है। आप विवेकवान, भागवत कृपा पात्र, डॉक्टर पर केस नहीं करें ।  केस इस मन पर होना चाहिए। जिसने केसों के खिलाफ़ कार्य किया है। श्रीकृष्ण की आज्ञा का उल्लंघन किया है। किसी ना किसी जन्म में या इसी जन्म के देख लो। और जन्म की याद न हो तो इसी जन्म में देख लो।  भगवान के विरुद्ध हम कैसे आचरण किए हैं अगर हमारे उन आचरणों का दंड आ जाये तो कोई निमित्त ना। हमारे दंड देने के लिए। कभी कोई काल पर अंगुली नहीं उठाता, काल निमित्त बना देता है। वो ऑपरेशन बिगड़ गया, वो ऐसा हो गया वो वैसा नहीं अवश्यमेव उपभोक्तभ्म  कृतम कर्म शुभाशुभम  भगवान कह रहे है-  भोगना पड़ेगा। इसीलिए कहते है चलो पिछली फसल ऐसी थी अब अगली फसल अच्छी कर लो जिससे आप सुख का अनुभव करें। नाम जब करें भगवान के आश्रित रहे सत्संग सुनिए, शास्त्रों का स्वध्याय कीजिये।  आचरण पवित्र रखें।  जो कष्ट आवें या जो सुखा आवे- सुख में फूलों मत, दुख में भूलो मत और शांत भाव से सह जाओ और भगवन नाम जब करो।  तो जैसी पिता की प्रॉपर्टी पर पुत्र का सर्वाधिकार हो जाता है। ऐसे ही भागवत प्राप्ति का अधिकार उसको हो जाता है जो दुख सुख को भगवतप्रसाद समझ करके सहन कर लेता है। निरंतर नाम जब करता है दुसरो का कभी दोष नहीं देखता तो हमें क्या करना है? हमें केवल अपने स्वामी की तरफ देखना है ।

जोई जोई प्यारो करे सोई मन भाये अगर आप अध्यात्म की बात समझना चाहो और अगर लोकमत बात समझना चाहो तो करके देख लो तुम। करके देख लो कुछ नहीं होने वाला क्योंकि हमारा कर्म हम को दंड देने वाला है इसलिए कुछ नहीं होने वाला है। या तो इसलिए बहुत सावधानी से चला जाए और ये पक्का विश्वास समझ लो की एक कटु वचन भी कोई हमें व्यर्थ में नहीं बोल सकता। अगर कटु वचन बोल रहा है तो मुझे सुनना चाहिए क्योंकि मेरे लिए वो दवा का काम करेगा। मेरे मन को ठीक करने के लिए जरूरत है उस कटुवचन की उस तिरस्कार की, उस अपमान की, उस विपत्ति की, उस दुख की। यदि अध्यात्म में चलते हो तो और लोक में तो जेल भरी है। इसी बात की तुमने एक गाली दी, उसने चार गाली दी तुमने थप्पड़ मारा, उसने मार दिया और जाके आजीवन सजा भोगी।  ये इसी में जेल भरी हुई है । अध्यात्म ऐसा नहीं सीखाता आध्यात्मिकता यह  सीखाती  है की हमारा ही कर्म – कोउ  काहु के सुख दुख कर दाता  निजीकृत कर्मभोग सुन भ्राता।। अपने ही कर्म हम को दंड देते है।  अन्यथा कोई नहीं दे सकता पक्का।अभी बुद्धि दूसरे की प्रेरित कर देगी,  वो कर्म और वो हमे आकर पीटने लगे, गाली देने लगे,  निंदा, तो हम उसको सहें, क्योंकि मन को जलन हो रही है ना? ताप के द्वारा विकार का नाश होता है।  जो आंतरिक ताप पहुँच रहा है। हमारा मन अशुद्ध हुआ है, अशुद्ध क्रियाएं की है, अब वो पवित्र किया जा रहा है। करुणानिधान भगवान कुछ दंड दे के कुछ बाहरी बाते सुनवा करके कुछ मनः संकल्प  विकल्प कल्पनात्मक भय देकर उसे पवित्र कर रहे हैं। ये तभी सही पाओगी जब सत्संग सुनोगी और नाम जब करोगी कोई कभी किसी को दुख नहीं देता है वो हमारा कर्म ही उसको भुलवा देता है। वो ऑपरेशन हुआ बोले उसमें हम यंत्र भूल गए, इतना डॉक्टर कैसे  भूल सकता है? अब हमारा दंड था इसलिए भोगना पड़ेगा। तो ये पक्का समझो आप अध्यात्म में किसी दूसरे पर अंगुली नहीं उठाई जाती। अध्यात्म का स्वरूप ही है। सर्वत्र मेरे भगवान विराजमान है, ना किसी की निंदा, ना किसी की स्तुति, सब में संतत्व विराजमान शरीर को जो दंड है। वो भाग्य अनुसार भोगना है। ये संसारी नहीं मानेंगे।  हम पहले ही कह रहे हैं ये अध्यात्म है। अगर आप कृपापात्र न होती तो आप सामने आती नहीं, अध्यात्म में ही दुख को जड़ से मिटा देता है, नहीं तो हम लोग दुख के नए नए निमंत्रण। तो फिर डॉक्टर ऐसा तो  इतने पैसे ऑपरेशन में लगाए हैं, उसके कारण मुझे इतना भोगना पड़ा। अब केस बढ़ता चला जा रहा है। कर्म बिगड़ता चला जा रहा।  हम अशान्त तन, मन, धन से अशान्त दूसरे को अशांत मूढ़ता छाती चली जाएगी। और अभी सोच बदल गयी। आनंदित हो गए वो बेचारा डॉक्टर तो एक निमित्त मात्र था मेरा कर्म ही उसकी बुद्धि में बैठ करके ऐसी त्रुटि करा करके मुझे भुगवाना था। इसलिए ऐसा किया। बस क्षमा रूपी महान बल तुम्हारे अंदर जागृत हो गया, आप आनंदित हो गए संतुष्टी जहाँ हुई तो भागवत आश्रय और बढ़ेगा। पवित्रता बढ़ेगी। पक्का समझो मुझे बस आपके वीडियो देखते थे। उस टाइम मतलब ऐसा लगता था जो भी मन मैं क्वेश्चन होता था उसके विडिओ आ जाती थी। खुद ही भगवान कृपालु हैं बस नाम जप करो और अच्छे भाव से रहो । अब तक गलती हुई, आगे गलती नहीं की। ये सब गलतियों का दंड है। कोई चाहे जितना बड़ा महात्मा हो जाये, शारीरिक दंड मिलता है। जो प्रारंभ में हम से बिगाड़ हो गए वो आकर भोग देते हैं। देखो बड़े बड़े महापुरुषों को रामकृष्णा परमहंस जी को गले का कैंसर, भाई जी महाराज को कितने कष्ट, उधर में कैंसर,  बड़े – बड़े कष्ट देखे जाते हैं, ये निर्मल किया जा रहा है। धुलाई हो रही। अब हमे हरी से मिलना है ना तो अब वहाँ गंदगी नहीं रखी जाएगी। एकदम निर्मल, भगवान को निर्मलता चाहिए।

निर्मल मन जन सो मोहि पावा सोई कपट तो धुलाई हो रही बहुत बढ़िया है हम तो अब समझो या ना समझों पर हम,  हमारी जो समझ है अगर समझ जाओगे तो निहाल हो जाओगी कि प्रभु हमारे अपराध क्षमा मत कीजियेगा। आप हमें दंड दीजियेगा। बस आप अपनी  स्मृति न भुलवाइएगा आप की याद बनी रहे, आपकी स्मृति बनी रहे यत्र यत्र मम जन्म कर्म नारके परमे पधित्वाराधिका रतन निकुंज मंडली तत्र तत्र हृद्य में विराज तामः।। स्वामिनी, हमारे कर्म के अनुसार आप हमें क्षमा मत करना अगर नरक लायक है तो नरक भेज देना पर स्वामिनी आप के चरणारविंद की स्मृति ना छूटे जहाँ भी भेजो आपकी याद राधा राधा राधा बस हमें कोई परेशानी नहीं। जाग्रत स्वप्न सुशुप्त इस व्रत में राधा पदार्थ छटा बैकुंठे रत्वा मम गतिर नान्यफ मंगतेरा। लाडली जहाँ भी रखो, बस जागृत में हो या स्वप्न में हो या शक्ति में हो, नरक में हो या बैकुण्ठ में हो राधा राधा राधा राधा हमें कोई परेशानी नहीं, सच्ची मान ले अगर हमारा मन प्रभु में लगा है तो दुख सुख कौन अनुभव करें? जब आप ऑपरेशन किया जाता है तो बेहोश कर दिया जाता है ना किसको? जीवात्मा को कभी कोई बेहोश कर ही नहीं सकता। किसी इन्जेक्शन में सामर्थ्य नहीं है। नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं धाति पावकःन चैनम क्लेधयन्ति  शोषित मारतः।। शरीर जड़ है तो बेहोश किसको किया गया? मन को उतनी त्वचा से या वो उसको पूरा बेहोश कर दिया गया तो एक औषधि में इतनी सामर्थ्य की ऑपरेशन हो रहा है। बेहोश होने के बाद उसको कोई पता नहीं चला तो क्या नाम है।  भगवान के रूप में, भगवान के चरणारविंद में इतनी सामर्थ्य नहीं । पक्का जितनी सामर्थ इन इंजेक्सनों  में, दवाइयों में, वो सब भगवान की ही द्वारा निर्धारित की हुई सामर्थ्य है तो हमारा मन यदि सा वही मनः कृष्ण पदारविन्दयो।।  अगर हमारा मन मानो मेरी राधा या पद मृदुल पद्मिनीतू ।

कृष्ण चरणरविंद में राधाचरणारविन्द में तो क्या करेगी पीड़ा। पीड़ा है तो भयानक। अभी थोड़ी देर में डाइलिसिस में पहुँच जाएंगे और पुरे दिन डायलीसिस होता है। क्या फरक पड़ता है? राजी हो तुम मुस्कराओ हम राजी है। आपकी स्मृति में हम राजी नहीं होंगे की स्मृति तुड़वा दो।भयानक से भयानक कष्ट दीजिए पर आप की याद में हम हर समय रहे हैं पर इतनी लड़ाई है हमारी आपकी अगर याद गयी तो फिर हमारे पास कुछ नहीं रह जाएगा की आपकी स्मृति है तो आप जो चाहो कष्ट दे दो चाहे जैसी तो आपको सच्ची कहते हैं जैसे गैस के चूल्हे पर दूध चढ़ाव, उफान आता है ना ऐसे आनंद का उफान आता है। कष्टों की दशा में आनंद का उफान आता है। अब ये संसारी आदमी नहीं समझेगा की कष्ट की दशा में विपरीत परिस्थिति में तो दुख के उफान आती है। नहीं नहीं आनंद के उफान। जहाँ विशेष कष्ट होता है तो जैसे विशेष भय  के अवसर पर माँ सामने आकर खड़ी हो जाती है। देखते हैं हमारे बच्चे को कौन पीटता है?ऐसे ही लाडली जो आप खड़ी हुई थी तुम मेरी तरफ देख कष्ट की तरफ देखी मत देखते कष्ट कैसे प्रभाव कर कोई कष्ट नहीं हर समय आनंदी नहीं नहीं ये कृपा की दिनचर्या  ये आदमी की दिनचर्या नही। तो क्या वो कृपा केवल मेरे ऊपर ही है क्या?क्या हम कोई नयी माटी से बने हुए हैं?  जो हमारे अंदर अंश है, वही आपके अंदर अंश है  जो हमारा पंचभौतिक वही आपका पंचभौतिक हाँ आप अहम की शरण में हो तो हम श्रीजी की शरण में। बस अंतर इतना है।

अगर आप भी श्री जी की शरण में हो जाये तो ऐसे ही ताल ठोक देंगे। ये माया अपने सहायकों के साथ जितना चाहे आक्रमण करके देख ले। अब गुरु मेहरवान तो चेला पहलवान, अब कुछ नही होने वाला। तो अब अपने लोग क्या डरपोक हो गए, क्योंकि माया का भोग किया ना माया की अधीनता अहंकार से स्वीकार कर ली। कैंसर अरे अब तो घबराहट पैदा हो गई। नहीं, नहीं। आओ कृष्ण तुम्हारा स्वागत है। अगर कैंसर रूप में आ करके आलिंगन करना चाहते हो तो स्वागत है आप कोई कभी भैय आ ही नहीं सकता। भगवान के शरणागत को। निर्भय होता है, निश्चिंत होता है, निशुल्क होता है, निष् संशय होता है, विपरीत भावना का सृजन ही उसके हृदय में नहीं हो सकता। ज्यो ज्यो राखत त्यो त्यो राहियत  हरी  जोईजोई प्यार करे सोई मन भाये। इसलिए आनंदित रहो, किसी पर दोष मत लगाओ और पवित्र होकर भगवान की कृपा का रसास्वादन करो।

Leave a Comment